जाति की ज़ंग
एक खबर का शीर्षक था;
साथ दिया गया चित्र खासा आकर्षक था।
चित्र में कुछ युवक मिलकर
राज्य परिवहन की बस जला रहे थे;
होली का हुड़दंग था शायद उनके लिये
चंद चेहरे बड़े खुश नजर आ रहे थे।
शनिवार, 4 अगस्त 2007
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भाई बहुत खूब अच्छा लिखा है पर यह क्या एक ही कविता दो दो ब्लाग पर वो भी एक ही दिन।
जवाब देंहटाएंशर्म आती है जब जाति के नाम पर ये सब होता है ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंराज्य परिवहन तक की होली तो फिर भी ठीक है. पर जब एक समुदाय दूसरे के साथ वह सब करता है जो पाशविक और बर्बर हो तब मामला समझ में बिल्कुल नहीं आता.
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