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शनिवार, 4 अगस्त 2007

जाति की ज़ंग

जाति की ज़ंग
एक खबर का शीर्षक था;
साथ दिया गया चित्र खासा आकर्षक था।
चित्र में कुछ युवक मिलकर
राज्य परिवहन की बस जला रहे थे;
होली का हुड़दंग था शायद उनके लिये
चंद चेहरे बड़े खुश नजर आ रहे थे।

4 टिप्पणियाँ:

  1. भाई बहुत खूब अच्‍छा लिखा है पर यह क्‍या एक ही कविता दो दो ब्‍लाग पर वो भी एक ही दिन।

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  2. शर्म आती है जब जाति के नाम पर ये सब होता है ।

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. राज्य परिवहन तक की होली तो फिर भी ठीक है. पर जब एक समुदाय दूसरे के साथ वह सब करता है जो पाशविक और बर्बर हो तब मामला समझ में बिल्कुल नहीं आता.

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