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रविवार, 17 फ़रवरी 2008

नया बनने का दर्द : गिरिजा कुमार माथुर

एक लंबे अरसे के बाद, एक बहुत ही सुंदर कविता के साथ आज फिर आपसे मुखातिब हूँ. नई कविता की सर्वाधिक लोकप्रिय कवित्रयी में गिरिजा कुमार माथुर, धर्मवीर भारती और भवानी प्रसाद मिश्र के नाम आते हैं. इनमें काफी अरसे तक आकाशवाणी से जुड़े रहे गिरिजा कुमार माथुर मंच पर सर्वाधिक क्रियाशील थे और अपने गीतों को पूरे तरन्नुम में गाने के लिये जाने जाते थे. उनके गीत ’हम होंगे कामयाब’ ने जो लोकप्रियता हासिल की, उसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है. आज उनकी यह पँक्ति एक मुहावरे का रूप ले चुकी है.
तो आइये आज पढ़ते हैं माथुर साहब की एक रचना ’नया बनने का दर्द’. इस रचना में माथुर साहब ने उस चिर-सत्य का उल्लेख किया है जिसके अनुसार हर नयी चीज के आने से कुछ पुरानी चीजें, चाहे वो कितनी भी अज़ीज़ क्यों न हों, इतिहास का हिस्सा बनकर रह जाती हैं.

पुराना मकान
फिर पुराना ही होता है
-उखड़ा हो पलस्तर
खार लगी चनखारियाँ
टूटी महरावें
घुन लगे दरवाजे
सील भरे फर्श,
झरोखे, अलमारियाँ

-कितनी ही मरम्मत करो
चेपे लगाओ
रंग-रोगन करवाओ
चमक नहीं आती है
रूप न सँवरता है
नींव वही रहती है
कुछ भी न बदलता है

-लेकिन जब आएँ
नई दुनिया की चुनौतियाँ
नई चीजों की आँधियाँ
घर हो-
या व्यवस्था हो
नक्शा यदि बदला नहीं
नया कुछ हुआ नहीं
बखिए उधेड़ता
वक्त तेजी से आता है
जो कुछ है सड़ा-गला
सब कुछ ढह जाता है

-यों तो पुराना कभी व्यर्थ नहीं होता है
वह एक रंगीन डोर है
रोम रोम बँधी जिससे
एक-एक पीढ़ियाँ
माटी से बनी देह
रंग, रूप, बीज-कोष
अपनी पहचान-गन्ध
संस्कार सीढ़ियाँ!

जो कुछ पुराना है मोहक तो लगता है
टूटने का दर्द मगर सहना ही पड़ता है
बहुत कुछ टूटता है
तब नया बनता है.

3 टिप्पणियाँ:

  1. सुन्दर कविता, समझाती हुई कि कुछ नया बनाना है तो पुराने का मोह त्यागना ही होगा।

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  2. बहुत गहरे भाव हैं। बहुत प्रेरक।

    जवाब देंहटाएं
  3. जो कुछ पुराना है मोहक तो लगता है
    टूटने का दर्द मगर सहना ही पड़ता है
    बहुत कुछ टूटता है
    तब नया बनता है.

    बिलकुल सत्य ! आभार इसे बाँटने का।

    जवाब देंहटाएं

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