झूठा है जो कहता है कि फ़ाकिर नहीं रहे
क्या जहाँ में उस कलाम के शाकिर नहीं रहे
तो आइये आज फ़ाकिर साहब को याद करते हुये उनके कुछ नगमें सुनते हैं. सबसे पहले ज़िंदगी से एक संवाद:
ज़िंदगी तुझ को जिया है:
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और इसके बाद:
अगर हम कहें और वो मुस्कुरा दें:
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उस मोड़ से शुरू करें फिर ये ज़िंदगी:
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फ़ाकिर साहब के कुछ और नग्मों के लिये रेडियोवाणी (युनुस खान) और ’एक शाम मेरे नाम’ (मनीष) ज़रूर देखें.
चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: Sudarshan_Faqir, सुदर्शन-फ़ाकिर, गज़ल, Gazal,
सचमुच. फाकिर साहब महान शायर थे. एक से एक अच्छी गजल लिखीं उन्होंने. इस पोस्ट के लिए आपको साधुवाद.
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने...बशीर बद्र, निदा फ़ाजली के साथ सुदर्शन फ़ाकिर ने अपनी ग़ज़लों से एक पूरी पीढ़ी को आनंदित किया है।
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद आपके सौजन्य से इस खूबसूरत गजल को दोबारा पढ़ने का मौका मिला। एक एक शेर दिल में उतर जाता है!
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