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रविवार, 31 अगस्त 2008

मजाज़ लखनवी की एक रूमानी गज़ल

आज एक अरसे बाद चिट्ठे की ओर रुख करने का मौका मिला. कोशिश है कि आगे इतना लंबा अंतराल न हो. तो आइये, टूटे सिरे को फिर जोड़ते हुये आज बात करते हैं ’मजाज़’ लखनवी की!

असरार-उल-हक़ ’मजाज़’ लखनवी उर्दू शायरी का एक ऐसा नाम है जिसे मुख़्तलिफ़ लोगों ने मुख़्तलिफ़ नज़रिये से देखा है. फ़ैज़ उन्हें इन्कलाब का मुगन्नी (गायक) करार देते हैं तो उनकी रूमानी शायरी से प्रभावित आलोचक जाफ़र अली ख़ान ’असर’ लखनवी उनके बारे में कहते हैं कि, ”उर्दू में एक कीट्स पैदा हुआ था लेकिन इन्कलाबी भेड़िये उसे उठा ले गये." पर इन तमाम मतभेदों के बावज़ूद मजाज़ के फ़न को सभी ने सलाम किया है.
आज आइये पढ़ते हैं, मजाज़ की एक खालिस रूमानी गज़ल:

अयादत
ये कौन आ गया रुखे-खंदाँ लिये हुये
आरिज़ पे रंगो-नूर का तूफ़ाँ लिये हुये

बीमार के क़रीब बसद-शाने-एहतियात
दिलदारि-ए-नसीम-ए-बहाराँ लिये हुये

रुख़सार पर लतीफ़ सी इक मौज़े-सरखुशी
लब पर हँसी का नर्म सा तूफ़ाँ लिये हुआ

पेशानि-ए-ज़मील पे अनवारे-तमकनत
ताबिंदगी-ए-सुबहे-दरख्शाँ लिये हुये

ज़ुल्फ़ों के पेचो-ख़म में बहारें छिपी हुईं
इक कारवाने-निगहते-बुस्ताँ लिये हुये

आ ही गया वो मेरा निगारे-नज़रनवाज़
ज़ुल्मतकदे में शमए-फ़िरोज़ाँ लिये हुये

इक-इक अदा में सैकड़ों पहलू-ए-दिलदही
इक-इक नज़र में पुरसिशे-पिनहाँ लिये हुये

मेरे सवादे-शौक़ का ख़ुरशीदे-नीमशब
अज़्मे-शिकस्ते-माहज़बीनाँ लिये हुये

दर्से-सुकूनो-सब्र ब-ईं-एहतमामे-नाज़
नश्तरज़नीं-ए-जुंबिशे-मिज़गाँ लिये हुये

आँखों से एक रौ से निकलती हुई हर आन
गर्क़ाबि-ए-हयात का सामाँ लिये हुये

मिलती हुई निगाह में बिजली भरी हुई
खिलते हुये लबों में गुलिस्ताँ लिये हुये

ये कौन है ’मजाज़’ से सरगर्मे-गुफ़्तगू
दोनों हथेलियों पे ज़नख़दाँ लिये हुये



अयादत - बीमार की मिजाज़पुर्शी के लिये जाना
रुख़े-ख़ंदाँ - हँसता चेहरा
आरिज़ - गाल
बसद-शाने-एहतियात - सावधानी की बहुत शान के साथ
दिलदारि-ए-नसीम-ए-बहाराँ - बसंती हवा की दिलदारी
लतीफ़ - कोमल
मौज़े-सरखुशी - खुशी की लहर
पेशानि-ए-जमील - सुंदर माथा
अनवारे-तमकनत - शान की रौशनी
ताबिंदगी-ए-सुबहे-दरख्शाँ - रौशन सुबह का आलोक
कारवाने-निगहते-बुस्ताँ - बाग की खुशबुओं का कारवाँ
निगारे-नज़रनवाज़ - नज़र को भाने वाली सुन्दरी
ज़ुल्मतकदे - अंधकारगृह
शमए-फ़िरोज़ाँ - रौशन शमाँ
पहलू-ए-दिलदही - दिल बहलाने का पहलू
पुरसिशे-पिनहाँ - छिपी पुरसिश
सवादे-शौक़ - प्रेम की वादी
ख़ुरशीदे-नीमशब - आधी रात का सूरज
अज़्मे-शिकस्ते-माहज़बीनाँ - चंद्रमुखियों को हराने का संकल्प
दर्से-सुकूनो-सब्र - शांति और धैर्य का पाठ
ब-ईं-एहतमामे-नाज़ - नाज़ के पूरे तामझाम के बावज़ूद
नश्तरज़नीं-ए-जुंबिशे-मिज़गाँ - पलकों की गति से नश्तर चलाना
रौ - धारा
गर्क़ाबि-ए-हयात - सृष्टि को डुबोने का
सरगर्मे-गुफ़्तग - बातचीत में मग्न
ज़नख़दाँ - ठोड़ी

अभी के लिये इतना ही. मजाज़ साहब के बारे में और अधिक जानकारी और उनकी कुछ चुनिंदा रचनाओं को पढ़ने के लिये मिलते हैं अगली बार!

9 टिप्पणियाँ:

  1. अच्छा अंदाज..........पढ़ने में मजा आया!अगली पोस्ट का इंतजार है ।

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  2. Mujhko meri Khud Ki Khabar Na Lage,
    Koi Achha B Is Kadar Na Lage,
    Aap Ko Dekha Hai Bas Us Nazar Se,
    Jis Nazar Se Aap Ko Nazar Na Lage

    जवाब देंहटाएं
  3. Mitha intazar te intazar nalo yaar mitha,
    Mitha yar te yar nalo pyar mitha,
    Mitha pyar te pyar nalo mithi sadi yaari,
    Es to mitha kuj na milna lab layi duniya sari.

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  4. Tere ishq mein zalim
    Humne ki kurbaan zindegi humari
    Harr ek saanso mein
    Humne likha hai naam tumahari
    Tere aane se mehka hai zindegi humara
    Humne likha hai is dil mein shirf naam tumhara.

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  5. घर कितने हैँ मुझे ये बता, मकान बहुत हैँ।
    इंसानियत कितनो मेँ है, इंसान बहुत हैँ॥
    मुझे दोस्तोँ की कभी, जरूरत नहीँ रही।
    दुश्मन मेरे रहे मुझ पे, मेहरबान बहुत हैँ॥
    दुनिया की रौनकोँ पे न जा,झूठ है, धोखा है।
    बीमार, भूखे, नंगे,बेजुबान बहुत हैँ॥
    कितना भी लुटोँ धन,कभी पुरे नहीँ होँगे।
    निश्चित है ...

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  6. Gujar Gayi Who Sitaaron Wali Sunahri Raat,
    Aa Gayi Yaad Who Tumhari Pyari Si Baat
    Aksar Hoti Rehti Thi Hamaari Mulaqaat
    Bin Aapke Hoti Hai Ab Toh Din Ki Shuruaat…

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